हिंदी कविता संग्रह ,
थक चूका हूँ मै,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
हर पल एक नई जंग की तैयारी होती है
रोज उठता हूँ तो कई ग़मों से यारी होती है,
कलम उठा कर लिखने लगता हूँ मैं जज़्बात अपने
पढ़ लेता है कोई तो बहुत दुश्वारी होती है,
संघर्षों की आग में अब
पक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
रोज उठता हूँ तो कई ग़मों से यारी होती है,
कलम उठा कर लिखने लगता हूँ मैं जज़्बात अपने
पढ़ लेता है कोई तो बहुत दुश्वारी होती है,
संघर्षों की आग में अब
पक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
बहुत मुश्किल से दो पल फुर्सत का इंतजाम होता है
करने वाला कोई और है और किसी और का नाम होता है,
तबाह होते हैं जब शहर, तो शहज़ादे महफूज होते हैं
कोई बर्बाद होता है तो वो लोग आम होते हैं,
भेदभाव की इस दुनिया में
अटक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
करने वाला कोई और है और किसी और का नाम होता है,
तबाह होते हैं जब शहर, तो शहज़ादे महफूज होते हैं
कोई बर्बाद होता है तो वो लोग आम होते हैं,
भेदभाव की इस दुनिया में
अटक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
कुछ छोड़ देते हैं खाना डाइटिंग के नाम पर
कुछ लोगों को न एक वक्त खाना नसीब होता है,
तपती गर्मी में कई ऐसी के नीचे सोते हैं
हादसे सोते लोगों के साथ तो बस फुटपाथ पर होते हैं,
कानून भी हस्ती का होता है अब ये सीख
सबक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
कुछ लोगों को न एक वक्त खाना नसीब होता है,
तपती गर्मी में कई ऐसी के नीचे सोते हैं
हादसे सोते लोगों के साथ तो बस फुटपाथ पर होते हैं,
कानून भी हस्ती का होता है अब ये सीख
सबक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं।
न जाने कब कोई सुधार आएगा
वतन को सुधारने कब कोई अवतार आएगा,
बचपन से जो देखी है मैंने हालत हिंदुस्तान की
न जाने कितनी बार सिसक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं
थक चुका हूँ मैं।
वतन को सुधारने कब कोई अवतार आएगा,
बचपन से जो देखी है मैंने हालत हिंदुस्तान की
न जाने कितनी बार सिसक चुका हूँ मैं,
जीवन की इस भाग दौड़ से
हर आने वाले नए मोड़ से
थक चुका हूँ मैं
थक चुका हूँ मैं।
सूरज निकल गया
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
चल सूरज निकल गया……..
मंजिल है दूर तो क्या? रस्तों पर ठहरना क्या?
कोशिश तो अब तू कर, कदम तू अपने बढ़ा,
कोई रोक न पाए तुझको, तू सिर पर फितूर चढ़ा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
कोशिश तो अब तू कर, कदम तू अपने बढ़ा,
कोई रोक न पाए तुझको, तू सिर पर फितूर चढ़ा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
जो दर्द मिले तुझको, तू उसको सहता जा,
जो राह न दिखती हो कोई, तो राह इक नई बना,
जो सोचा है तूने, हासिल वो कर के दिखा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
जो राह न दिखती हो कोई, तो राह इक नई बना,
जो सोचा है तूने, हासिल वो कर के दिखा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
ये प्रश्न जो उठते हैं, तेरे आगे बढ़ने पर,
पाकर मंजिल अपनी, खामोश तू इनको करा,
नजरें रखना बस लक्ष्य पर और आगे बढ़ता जा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
पाकर मंजिल अपनी, खामोश तू इनको करा,
नजरें रखना बस लक्ष्य पर और आगे बढ़ता जा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा।
पहुंचेगा जब तू ठिकाने पर, सब तुझको ही बस बुलाएँगे,
ये जो तेरे विरुद्ध हैं खड़े हुए, खुद को तेरा हितैषी बताएँगे,
बस रख के भरोसा खुद पर तू उम्मीद के दिए जलाये जा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा ;
ये जो तेरे विरुद्ध हैं खड़े हुए, खुद को तेरा हितैषी बताएँगे,
बस रख के भरोसा खुद पर तू उम्मीद के दिए जलाये जा,
चल सूरज निकल गया, उठ अब तू हो जा खड़ा,
हिम्मत जो है तुझमें, उसको अब तू जुटा ;
manoj pharswan
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